मेरे अंदर दो इंसान रहते हैं - कविता
- Deepak RS Sharma
- Jul 8, 2020
- 1 min read
Updated: Jul 23, 2020

मेरे अंदर दो इंसान रहते हैं ।
एक रोने नहीं देता, एक हंसने नहीं देता ।
एक चुप नहीं रहना चाहता ।
एक कुछ नहीं कहना चाहता ।
एक के अंदर कोलाहल बहुत ज्यादा है ।
दूसरा शांत रहने पर आमादा है ।
आपस में इल्ज़ाम मढ़ते रहते हैं ।
मेरे अंदर दो इंसान रहते हैं ।।
मैंने कानूनी कार्रवाही को दो ही जगह होते देखा है ।
एक फिल्मों में दूसरा अपने भीतर ।
वो जो मैंने कहा मेरे अंदर दो इंसान रहते हैं ।
एक डिफेंस लॉयर है, दूसरा प्रॉसिक्यूटर ।।
कभी लगता है एक मुझे आज़ाद कर देगा।
कभी लगता है एक मुझे बर्बाद कर देगा।
एक की दलील सुनता हूं, तो लगता है इसने जो कहा वो ही सही है ।
फिर दूसरा ऑब्जेक्शन करता है, तो लगता है अरे सही बात तो इसने कही है ।।
पर ये जो दोनों इंसान हैं, दोनों ही बेईमान है ।
ये सिर्फ द्वंद्व उत्पन्न करते हैं ।
कुछ समय के लिए सोच संपन्न करते हैं।
वो जैसे अंग्रेज़ी दवाई करती हैं,
हां कुछ वैसे ही ।
एक तरफ रिलीफ़ है, दूसरी तरफ़ साइड इफ़ेक्ट है |
एक व्हाइट है, एक ब्लैक है, पर दोनों ही सस्पेक्ट है | |
मैं नहीं जानता कि मैं गलत हूं या सही हूं ।
मुझे लगता है मैं दोनों के ही बीच में कहीं हूं ।।
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